♂️ आचार्य प्रशांत से समझे गीता और वेदांत का गहरा अर्थ, लाइव ऑनलाइन सत्रों से जुड़ें:<br />https://acharyaprashant.org/hi/enquir...<br /><br /> आचार्य प्रशांत की पुस्तकें पढ़ना चाहते हैं?<br />फ्री डिलीवरी पाएँ: https://acharyaprashant.org/hi/books?...<br /><br />➖➖➖➖➖➖<br /><br />#acharyaprashant<br /><br />वीडियो जानकारी: <br /><br />प्रसंग: <br />~ क्यों हम कहीं भी पूरे नहीं हो पाते?<br />~ आंतरिक श्रम क्या है? और ये श्रम पुराने आदमी के शारीरिक श्रम से कहीं ज्यादा दुखदाई क्यों है? <br />~ हम बिना बाजू हिलाए भी क्यों बुरी तरह थके हुए रहते हैं?<br />~ आधुनिक आदमी की त्रासदी क्या है?<br />~ सच्चा जीवन कौन सा है?<br />~ कौन हजारों मील की यात्रा कर सकता है?<br />~ परीक्षण कैसे होना चाहिए?<br /><br />प्रार्थना : बाहर आराम की ज़िन्दगी न मिले<br /><br />यदा नाहं तदा मोक्षो यदाहं बंधनं तदा। <br />मत्वेति हेल्या किञ्चिन्मा गृहाण विमुञ्च मा ॥ <br />~ अष्टावक्र गीता - 8.4<br /><br />अनुवाद: जब तक पुरुष में अहंकार बैठा है- "मैं ब्राह्मण हूँ," "मैं ज्ञानी हूँ," "मैं त्यागी हूँ," <br /> तब तक वह मुक्त कदापि नहीं हो सकता है।<br /><br />विवेक बुद्धि द्वारा सारे कर्म तथा कर्मफल मुझ में अर्पित करके निष्काम, ममता-रहित और शोक-शून्य होकर तुम युद्ध करो। भगवद गीता - 3.30 <br /><br />तदेजति तन्नैजति तद् दूरे तद्वन्तिके । <br />तदन्तरस्य सर्वस्य तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः ॥ <br />ईशोपनिषद - 5<br /><br /><br />संगीत: मिलिंद दाते<br />~~~~~